संधारित्र = संधारित्र एक ऐसी युक्ति है जिसमे किसी चालक के आकर मे वृदि किये बिना, आवेश की स्ठिर मात्रा पर उसके विभव मे कमी करके चालक की धारिता मे वृदि होती हैं |
संधारित्र मे परस्पर निकट स्थित चालक प्लेट होती है जिनमे से एक प्लेट पर धनावेश तथा दूसरी प्लेट पर ऋणावेश होता है | इसके लिए दोनों प्लेटों को बैटरी के क्रमश: धन एव ऋण टर्मिनलो से जुड़ा होता हैं | अब यदि बैटरी को हटा दिया जाए तो भी चालकों पर आवेश सग्रहित रहता है | अत: संधारित्र को आवेश संचय की युक्ति भी कहा जाता हैं |
संधारित्र पर कुल आवेश +Q -Q =0 ही होता है |
संधारित्र पर आवेश से अभिप्राय इसकी किसी प्लेट पर आवेश के परिमाण (Q) से होता है | इसी प्रकार संधारित्र की प्लेटों के मध्य विभवान्तर V को संधारित्र का विभव कहते है | चालक के समान संधारित्र के लिए :-
Q α V
Q =CV
संधारित्र के प्लेटो की आकृति आयताकार, बेलनाकार, गोलाकार आदि कोई भी हो सकती है | संधारित्र की धारिता C इन प्लेटो के आकार, आकृति, इनके मध्य की दुरी तथा इनके मध्य उपस्थित माध्यम पर निर्भर करता है |
संधारित्र विधुत ऊर्जा संग्रहण की एक युक्ति है |
* संधारित्र का सिद्धांत :-
*संधारित्रों के प्रकार :-
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