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Conductor and Insulatur & free and bound charges and dielectric substance and polarization

चालक एव विधुतरोधी =विधुत धारा के चालन के आधार पर हम प्रकति मे पाये जाने वाले पदार्थ को दो वर्गों मे बॉट सकते हैं -                                                                                                                                                           (1). चालक = वे पदार्थ जिनमे विधुत आवेश का एक स्थान से दूसरे स्थान तक प्रवाह आसानी से हो जाता है तथा विधुत धारा प्रवाहित हो जाती है, चालक पदार्थ कहलाते हैं |                                                                                       उदाहरण :- चांदी ,तांबा ,लोहा ,पारा आदि विधुत के चालन होते हैं | चांदी सबसे अच्छा चालक होता है | 

 (2). विधुतरोधी = वे पदार्थ जिनमे विधुत का चालन नहीं हो पाता है उन कुचालक या विधुतरोधी कहते हैं |                    उदाहरण :- कांच ,रबर ,ऐबोनाईट ,सुखी लकड़ी आदि विधुतरोधी पदार्थ हैं | इन परावैद्युत पदार्थ भी कहते हैं |    

 मुक्त एव बद आवेश = धात्विक चालक पदार्थो के परमाणु की बाह्यतम कक्षा के इलेक्ट्रान पर नाभिक का  आकर्षण बल दुर्बल होता है एव ये इलेक्ट्रान पदार्थ के अन्दर स्वंतत्र रूप से विचरण कर सकते है ,इन मुक्त इलेक्ट्रान कहते है | परन्तु मुक्त इलेक्ट्रान धातु की सतह से बाहर नहीं आ सकते हैं | 

  परमाणु मे इलेक्ट्रान, नाभिक के चारो ओर निश्चित कक्षाओ मे चक्कर लगाते हैं | परमाणु की आंतरिक कक्षाओ मे स्थित इलेक्ट्रोनो पर नाभिक का आकर्षण बल प्रबल होता है एव ये इलेक्ट्रानअपने परमाणु से बंद अवस्था मे होते है | 

परावैद्युत पदार्थ एवं धुवण (dielectric substance and polarization ):- 

ऐसे पदार्थ जो वास्तविक रूप से कोई धारा प्रवाहित नहीं करते है यह सिर्फ अल्प धारा का प्रदर्शन करते है | eg. जल , मोम , वायु ,कागज ,तेल  etc. 

परावैद्युत पदार्थ दो प्रकार के होते है | 

(1). अधुवीर्य परावैद्युत पदार्थ 

(2). धुवीर्य परावैद्युत पदार्थ 


* अधुवीर्य परावैद्युत पदार्थ =इनकी आकृति नियमित होती है | परमाणाओ का द्रवमान केंद्र सपाती होता है | इनका दिवधुर्व आघूर्ण  0 होता है | 

उदाहरण -  कार्बडाईऑक्साइड 

 


जब अधुवीर्य परावैद्युत पदार्थ  को बाह्यय विधुत क्षेत्र में रखा जाता है तो धनावेश का वितरण केंद्र विधुत क्षेत्र के अनुदिश तथा ऋणावेश का वितरण केंद्र विधुत क्षेत्र के विपरीत कुछ विस्थापित हो जाते है जिससे प्र्त्येक अणु में कुछ दिवधूर्व आघूर्ण प्रेरित हो जाता है | 

बाह्यय विधुत क्षेत्र की उपस्थिति में  परावैद्युत पदार्थ  में विधुत आघूर्ण प्ररित होना,परावैद्युत पदार्थ धुर्वण  कहलाता है | 

* धुवीर्य परावैद्युत पदार्थ:-

इनका आकार अनियमित  होता यह परमाणाओ का द्रवमान केंद्र सपाती नहीं होता है| इनका दिवधुर्व आघूर्ण  0 नहीं होता है | eg. -जल 


 किसी धुवीर्य परावैद्युत पदार्थ के अणु बाह्यः विधुत क्षेत्र की अनुउपस्थिति में तापीय ऊर्जा के कारण अनियमित रूप से व्यवस्थित होते है | इस कारण पदार्थ के किसी भी आयतन जिसमे बहुसख्या में अणु है परिणामी दिधुर्व आघूर्ण 0 है तथा इस कारण पदार्थ का परिणामी दिधुर्व आघूर्ण 0  होता है | पदार्थ का बाह्यः विधुत क्षेत्र में रखने पर प्रत्येक अणु दिधुर्व पर बलाघूर्ण कार्य करता है जो अणु को बाह्यः विधुत क्षेत्र के अनुदिश सरेखित करने का प्रयाश करता है | बाह्यः विधुत क्षेत्र की तीरवता बढ़ाने पर ,अधिक से अधिक अणु दिधुर्व ,बाह्यः विधुत क्षेत्र  में सरेखित होते है | इस प्रकार पदार्थ में नेट दिधुर्व आघूर्ण प्रेरित होता है | 

*धुर्वण :-

बाह्यय विधुत क्षेत्र की उपस्थिति में पैराविधुत पदार्थ में विधुत दिधुर्व आघूर्ण प्रेरित होने की घटना को धुवण कहते है | 


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